डाकिनी मंत्र साधना

Dakini Kundalini Mantra

डाकिनी

तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है |सामान्यजन भी इस नाम से परिचित हैं |डाकिनी नाम आते ही एक उग्र स्वरुप की भावना मष्तिष्क में उत्पन्न होती है |वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है अपने सभी रूपों में |

डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं |डाकिनी का अर्थ है –ऐसी शक्ति जो “डाक ले जाए “|यह ध्यान रखले लायक है की प्राचीनकाल से और आज भी पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है -चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना |

यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है | तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है |यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है |यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है |यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं ,|इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं

डाकिनी Rakini

शेषनाग के शरीर के मध्य में नौ कुंण्डलियां होती है ऊपरी शीर्ष पर चंद्रमा होता है इस चंद्रमा के नीचे एक उर्जा चक्र होता है इस ऊर्जा चक्र में देवी पार्वती का निवास होता है। इन्हें गौरी कहा जाता है यहां के चक्र के मध्य में सदाशिव विद्यमान होते हैं। क्षेत्र के बाहर इसकी शक्ति का जो क्षेत्र हो तो बनता है मैं वास्तविक मानसरोवर सरोवर है इस चंद्रमा के मध्य बिंदु पर शीर्ष से एक शक्ति का पतन होता रहता है यही सत्य है जो शरीर रूपी दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में आत्मदाह करती है।
इसी शक्तिपात से किसी भी इकाई का जीवन है इसके नीचे ललाट के मध्य में त्रिनेत्र धारी रुद्र या ज्ञानेश्वरी का निवास है इसके नीचे ललाट के मध्य त्रिनेत्र धारी रूद्र या ज्ञानेश्वरी का निवास है यह वह चक्र है जिस में निवास करने वाली शक्ति विवेक ज्ञान भौतिक सामर्थ्य से परे की शक्ति प्रदान करती है।
इसके नीचे भृकुटियों के मध्य गणेश हैं इसे योगी आज्ञा चक्र कहते हैं वैदिक ऋषि इसे विश्व देवा कहते हैं इसके नीचे नील सरस्वती या तारा है जो दो स्वरूपों मे कंधे गर्दन एवं गर्दन और खोपड़ी के जोड़ पर रीढ़ में विद्यमान होती है।
इसको वागेश्वरी सरस्वती वीणा वादिनी भी कहा जाता है इसके नीचे केंद्र में जीवात्मा या नाभिक है पूरे शरीर का स्वामी यही है क्योंकि इस केंद्र में ही आत्मा रहती है इसी को भुनेश्वरी कामेश्वरी विष्णु इंद्र अर्धनारीश्वर राजराजित शिव इत्यादि कहा जाता है।
इसके नीचे चक्र में लक्ष्मी है इन्हें कमल ब्रह्मा आदि कहा जाता है इसके दो रूप है, दो चक्र हैं इसके नीचे दुर्गा का चक्र है और इसके नीचे काली का इस चक्र के नीचे जो पुंछ निकलती है वह भैरव जी हैं योग इन चक्रों को किसी और नाम से संबोधित करते हैं वैदिक ऋषि इन्हें भिन्न-भिन्न आकाश के रूप में व्यक्त करते हैं जिनके मध्य देवता निवास करते हैं शक्ति मार्गी इनमें देवियों का निवास बताते हैं शिवपूजक शिवलिंग पंथ में इसे नीचे से डाकिणी, राकिणी, लाकिणी, काकिणी, आदि सप्त योगिनियों के नाम से जानते हैं।
डाकिणी, राकिणी, चैव लाकिणी काकिनी,तथा । शाकिनी हाकिणी, चैव क्रमात् षट् पंकजाधिपा।।
इनमें तीन देवियां और हैं जिनकी कुंण्डलिनी की षट् चक्र वेधन साधना मे प्रयोगात्मक उपयोग नही है ।

डाकिणी का स्वरूप:- रक्त वर्ण की लाल-लाल आंखों लंम्बे बाल नाटे कद की उन्नत स्तनों वाली मुंह में रक्त और मांस भरे भयानक घोर मुद्रा वाली डाकनी नग्न एवं भयानक अट्टाहास करती हुई है।
यह शमशान वासिनी दाहिने दोनों हाथ में खड़ंग और शूल लिए और वाम हाथों में नर कपाल में रक्त और तलवार लिए उग्र स्वरूप की है यह साधक के शत्रु कुल को नष्ट करने वाली है पशुजनों में भय उत्पन्न करने वाली है और रक्त एवं मदिरा से प्रसन्न होने वाली है।
इनकी साधना सर्वांग भैरवी के साथ भी की जा सकती है। महीने द्वार पालिका कहा जाता है , काली के स्थान पर चक्र की अधिष्ठात्री देवी यही है डाकनी का स्थान मूलाधार मैं होता है जो ऋणबिन्दू का अंतिम चक्र है यह रीढ़ कमर की हड्डी के जोड़ के मध्य होता है। डाकिनी यानी डाक ले जाने वाली अर्थात चेतना को नष्ट करके घोर उन्माद काम क्रोध आक्रमकता से युक्त देवी है।
स्मरण करेंगे तो यही भाव महाकाली का है डाकनी की सिद्धि से वही शक्ति प्राप्त होती है जो कामकला काली की सिद्धि से प्राप्त होती है। किंतु यह साधना कुण्डलिनी की शक्ति को तकनीकी द्वारा जगाने की है। ध्यान स्वरूप कि नहीं है ध्यान रूप में भी सिद्धि प्राप्त होती है पर वह इतनी शक्तिशाली नहीं होती है।कुण्डलिनी की सिद्धि परातंत्र विद्या है।
वास्तव में मूलाधार के शिवलिंग की शीर्ष ऊर्जा सर्प फण को ऊपर खींच कर ऊपरी चक्रों के केंद्रों में ले जाने में भीषण मानसिक शक्ति की आवश्यकता होती है। इसी कारण अपने अंदर की भयानक शक्ति को जगाना पड़ता है इस सर्प के फण को उर्ध्व में खींचने में यही समर्थ है। कामकलाकाली महाकाली और कामदेव की भी शक्ति इसे ऊपर खींच सकती है पर इनका उपयोग इस कार्य में स्यात् ही होता है।
योगी प्राणायाम से नारी शक्ति को जगा कर इसे खींचते हैं वैदिक ऋषि इसी चक्र की साधना में ही नहीं करते वह केवल सहस्त्रार चक्र की साधना में ही लिप्त रहते हैं यह चक्र चंद्रमा के नीचे अधोगामी है सहस्त्रधारा के रूप में जंतु मनुष्य में और वृक्षों मे पत्तों के रूप में फैला होता है। |

तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और माना जाता है की यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि आसान हो जाती है और काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि हो जाए तो अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध हो सकते हैं कम प्रयासों में |इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है |डाकिनी नामक देवी की साधना तांत्रिकों की प्रसिद्ध साधना है |

हमारे अन्दर क्रूरता ,क्रोध ,अतिशय हिंसात्मक भाव ,नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति से अर्थात तरंगों से होती है |डाकिनी की सिद्धि पर व्यक्ति में भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती हैतंत्र जगत में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है |यह डाकिनी प्रकृति [पृथ्वी] की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है |इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है |यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है |इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है |यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक की राह बेहद आसान हो जाती है ,यद्यपि साधना में चूक नहीं होनी चाहिए |

इसका स्वरुप एक सुन्दर ,गौरवर्णीय ,तीखे नाक नक्श [नाक कुछ लम्बी ]वाली युवती की होती है जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है |काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना ,विचरण और प्रभाव का विवरण मिलता है |इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है ,इसको नष्ट नहीं किया जा सकता ,यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी |इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है यद्यपि स्वयमेव भी प्रतिक्रिया कर सकती है |सामान्यतया यहनदी-सरोवर के किनारों , घाटों ,शमशानों, तंत्र पीठों ,एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर सकती हैं ,जो उजाले की बजाय अँधेरे में होना पसंद करती हैं |

इस डाकिनी और मूलाधार की डाकिनी में अंतर होता है |मूलाधार की डाकिनी व्यक्ति के मूलाधार से जुडी होती है ,कुंडलिनी सुप्त तो वह भी सुप्त |तंत्र मार्ग से कुंडलिनी जगाने की कोशिश पर सबसे पहले इसका ही जागरण होता है |इसकी साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और कुंडलिनी साधना के अलावा भी यह साधित होती है |कुंडलिनी की डाकिनी शक्ति की साधना पर प्रकृति की डाकिनी का आकर्षण हो सकता है और वह उपस्थित हो सकती है, यद्यपि प्रकृति में पाई जाने वाली डाकिनी प्रकृति की स्थायी शक्ति है जिसकी साधना प्रकृति भिन्न होती है किन्तु गुण-भाव समान ही होते हैं |इसमें अनेक मतान्तर हैं की डाकिनी की स्वतंत्र साधना पर काली से सम्बंधित डाकिनी का आगमन होता है अथवा प्रकृति की डाकिनी का ,क्योकि प्रकृति भी तो काली के ही अंतर्गत आता है |

वस्तुस्थिति कुछ भी हो किन्तु डाकिनी एक प्रबल शक्ति होती है और यह इतनी सक्षम है की सिद्ध होने पर व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकताएं पूर्ण कर सकती है तथा साधना में सहायक हो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है |

डाकिनी कुंडलिनी मंत्र साधना

डाकिनी की सहायता से सभी सिद्धीयां जल्दी प्राप्त होने लगती हैं कुंडलिनी जागरण का रास्ता भी खुलने लगता है इसके लिये सर्वप्रथम आप को डाकिनी देवी मंत्र सिद्ध माला व सामग्री लेनी होगी उस के साथ साथ ही आप को सारे मंत्र साधना विधा फ्री में मिल जाये गी.
डाकिनी की साधना आप अपने एकांत  कमरे मे भी कर सकते हैं याद रक्खें डाकिनी एक प्रचंड शक्ति है इसलिये यह साधना रात्रि काल ही ऊचित होता है जिसमें कोई व्यवधान न हो यह 21 दिन की साधना है.
दिन वीरवार या नवरात्रि या शुभ दिन से शुरू करें
दिशा – ऊतर या पूर्व मुख आसन पर बैंठे .
डाकिनी एमुलेट
यंत्र मालाको किसी साफ प्लेट में स्थापित करें, धूप दीप लगा मीठा अर्पण करें.

गणेश व शिव जी गुरू जी की 5 /5 माला जाप करें
1- ऊं गं गणप्तये नमः
2- ऊँ नमः शिवाय
3- ऊँ ह्रीं गुरूवे नमः
उसके बाद मूल मंत्र का जाप करें

Dakini Kundalini Mantra

Dakini goddess is very important and powerful to awake Kundalini.
Get Dakini mantra Energized
Yantra Rosaryfar complete protection and Siddhi by parcel post send your address.
Contact

मूलाधार चक्र साधना

मूलाधार चक्र साधना

मूलाधार Muladhar चक्र के चित्र में चार पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये चारों मन के चार कार्यों :

पहला स्थान शिव धर्म प्राण ,स्नायु तंत्र , है दुसरा शक्ति चामुंडा ,तनाव मुक्ति , तीसरा सुर्य काम शक्ति है। एवं चौथा सौंदर्य वाणी , सहस्रार चक्र मोक्ष इस चक्र के अंदर त्रिकोण में कुछ ओर शक्तियां समाहित है , जिस का ज्ञान आगे शिव धर्म कुंडलीनी जागरण साधना करने वाले को दिया ही जाता है , सभी इस चक्र में उत्पन्न होते हैं। मनुष्य शरीर के सात चक्रों में से मूलाधार चक्र प्रथम चक्र है. इसका स्थान मनुष्य रीढ़ हड्डी के नीचे गुदा और लिंग के मध्य होता है. इस चक्र में 4 पंखुडियां होती है इसके सबसे नीचे स्थित होने के कारण ही इसे आधार चक्र कहा जाता है. क्योकि हर बहुत ही कम व्यक्ति अपने चक्रों को जाग्रत कर पाता है जिसके कारण उनकी चेतना मूलाधार चक्र में ही फंसी रहती है और उनके मरने के समय में भी उनकी चेतना वहीँ रहती है. अगर आप भोग, विलास, संभोग, आलस मे लिप्त मानव ,जन्म मरन नरक एवं अधर्म में फंसा रहता है। आपकी चेतना और उर्जा मूलाधार चक्र के आसपास ही एकत्र हो जाती है. व्यक्ति की गति कर्मों के अनुसार ही तय होती है कि यही से स्वर्ग ओर यही से नरक का द्वार खुलता हैं।

मूलाधार चक्र मुलाधार चक्र साधना बिना मूलाधार चक्र ना तो व्यक्ति के उर्जा रूप शरीर का निर्माण होता है और ना ही उसके भौतिक शरीर का तो यहीं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मूलाधार चक्र व्यक्ति के जीवन में कितना महत्व रखता है. जब व्यक्ति अपनी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करना चाहता है तो उसकी शुरुआत भी उसे मूलाधार चक्र से ही करनी पड़ती है. ·

मूलाधार चक्र जागरण प्रभाव :

जब किसी व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है तो उसके स्वभाव में परिवर्तन को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. जिससे व्यक्ति निर्भीक और उसके अंदर वीरता की भावना उत्पन्न होने लगती है. इसके साथ ही उसके मन में आनंद का भाव भी उत्पन्न हो जाता है. किन्तु आप इस बात का ध्यान रखें कि जब भी आप अपने मूलाधार चक्र को जागृत करने के बारे में विचार करें तो आप एक संकल्प के साथ और पूर्ण जागरूकता के साथ ही इसकी शुरुआत करें. · मूलाधार चकएक का बीज तो “ लं ” है परंतु इस से पहले अपने आधार को मजबूत बनाने के लिए सहायक देवी देवताओं को ज्रागत करना जरूरी है जो भक्तों को सुरक्षित मुलाधार चक्र साधना एवं कुंडलीनी जागरण मे सफलता की प्रथम सीढ़ी है।

१- गणेश मंत्र

२- चांमुन्डा महाकाली

३- शिव जी

4- ब्रम्हा

5- इन्द्र देव

6- डाकिनी देवी

सब से पहले इन्हें सिद्ध करने के लिए सहायक , 3 सेट यन्त्रों माला द्वारा मंत्र साधना करे इस किट के साथ साथ आप को पावर फूल मंत्र फ्री दिया जाये गा। इसके साथ आप के अंदर रोशनी ओर शक्ति द्वारा देखने की ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होने लगे गी , जो कुंडलीनी के अंदर ढूंढने में सहायक होती है। अगर आप कुंडलीनी ओर मुलाधार चक्र को अगर देख नही पा रहे हो तो जागरण केसे करो गे। इसलिए आप को सीढ़ी दर सीढ़ी आगे चढ़ते जाना है। आसान ओर सेफ रास्ता यही है जो शिव द्वारा संचालित एवं निर्देशित किया है।

मूलाधार चक्र कुंडलिनी तंत्र साधना

मूलाधार चक्र साधना विनियोग ध्यान

मुलाधार चक्र साधना से सौंन्दर्य प्राप्ति ते साथ साथ ,तेजस्विता तो व्याप्त होती ही है ,परम शिवा सहस्रार चक्र त्तक जाने वाला सम्पूर्ण सिद्घियों का राजपथ का प्रारभ्भिक द्घार भी खुलने लगता है।

मानव देह के गुह्मदेश से दो अगुंल ऊपर और लिड्गमूल से दो अंगुल नीचे चार अंगुल विस्तृत जो योनि मण्डल है, उसके ऊपर ही मूलाधार पध अवस्थित है,यही मानव शक्ति का आधार चक्र है।

आम तौर पर यह शक्तियां नीचे की तऱफ अग्रसर रहती हैं। यह ऊर्जा पुरूषों में वीर्य और स्त्रियों में रज का रूप धारण करके लिंग व योनि प्रदेश की तरफ प्रवाहित होती है। यदि इसे अधोमुखी होने से रोक कर ऊर्ध्वमुखी कर दिया जाये तो यही शक्ति श्रेठता प्रदान करने लगती है। मानव से देवत्व प्राप्त करने की प्रक्रिया यंही से शुरू हो जाती है। देवों ते देव महादेव त्तक पहुचनें का रास्ता खुलने लगता है। मोक्ष का द्धार मुलाधार चक्र से ही खुलता है।

यह चक्र मुलाधार रक्त वर्ण वाले चार दलों के कमल स्वरूप ,रंग सोने के समान सुन्दर है। परन्तु विकारों तथा पाप ग्रस्त होने के कारण इस चक्र की ऊर्जा क्षीण हो जाती है। मंत्र साधना द्घारा ही मुलाधार चक्र की शक्ति को जाग्रत करके कुंडलिनी शक्ति तक पहुंचा जाता है।

मुलाधार चक्र में मुख्य रूप से चार दलों के चार बीज होते हैं, वं ,शं,षं,सं।

इस पध् के अन्दर अष्ट शूल शोभित चतुष्कोण पृथ्वी मंडल होता है ,जिसके एक ओर लं बीज विधमान होता है। इसके अन्दर पृथ्वी बीज के प्रतिपाध हाथी पर सवार चतुभूर्ज इन्द्र विराजित है। इन्द्र की गोद में शिशु रूपी ब्रम्हा जी हैं। ब्रह्मा की गोद में रक्तवर्ण , चर्तूभुजा और सांलकृता डाकिनी देवी शक्ति रूपा विराजमान है।

लं बीज के दक्षिण भाग में कामकला रूप लाल रंग का त्रिकोण मण्डल स्थित है,जिसके अन्दर तेजोमय क्लीं बीज स्थित है,इसी के अन्दर ठीक ब्रह्मानाडी के मुख पर स्वयंभुलिंग विधमान है। यह शिवलिंग लाल रंग का और हजार सुर्यों के समान तेजोमय होता है ,इसी शिवलिंग पर साढे तीन फेरे लगाये हुऐ कुण्डलिनी शक्ति विधमान है।

वं– पहले दल का बीज इसके द्घारा ही शरीर में रस- प्राण शक्ति वृद्घि तथा स्नायु तंत्र चैतन्य होता रहता है।

शं– रूप आत्मिक और मानसिक सोन्दर्य प्राप्त होता है तथा शरीर तनाव मुक्त होता है।

षं– मज्जा पुष्ट होती हैं तथा शरीरिक बल वृद्घि होती रहती है।

सं– सोन्दर्य वृद्घि, चुम्बकीय व्यक्तित्तत्व प्राप्त हेता है।

साधना के बाद मुलाधार चक्र जाग्रत अवस्था में आने पर,धीरे-धीरे इस चक्र की सुप्त शक्तियां स्पंदन करने लगती है, जैसे जैसे स्पन्दन में वृद्घि होती है यह अगले चक्र स्वाधिस़्ठान की और अग्रसर होता है,उस चक्र पर स्थित शक्तियों का जागरण करता है। यही क्रम प्रत्येक चक्र के साथ चलता ही है।

मुलाधार कुंडलिनी जागरण साधना -:

सोमवार षा वीरवार अथवा किसी भी अच्छे मुहुर्त से, ब्रह्मामुहुर्त से साधना आरम्भ करें।

दिशा – ऊतर अथवा पुर्व

स्नानो उपरांत अासन पर बैठ कर अपने सामने सफेद वस्त्र के ऊपर जामुनी (बैंगनीं) रंग से रंगे हुऐ अक्षत से चार कमल दल वाले कमल का निर्माण करें ,कमल के मध्य में सफेद चावल भर दें प्रत्येक दल पर कुंकुम से बीजाक्षर अंकित करें, कमल के मध्ये लं बीजाक्षर के ऊपर मुलाधार जागरण मंत्र सिद्घ मुलाधार कुण्डलिनी यंत्र स्थापित करें। फिर ५ मिनट तक भस्रिका प्राणायम करें, आंखे बन्द करके धीमी गति से सांस लेते हुऐ ,अपनी चेतना को मुलाधार चक्र स्थान पर केद्रित करें ५ मिनट त्तक ,इस क्रिया से कुंडलिनी सफूरित होती है।

इसके बाद गणेश की २ माला

ॐ गं गणपत्यै नमः।

५ माला शिव जी की

ॐ नमः शिवाय

२ माला गुरू जी की करें।

तत्पश्चात मुलाधार चक्र पर निम्न श्लोक ऊच्चारण करते हुऐ कुंकुम ,अक्षत और श्वेत पुष्प अर्पित करे।

ब्रह्मादिदेव गणवन्दित पादपदमां विश्वेश्वरी ,शिवा विश्व विकासयिमिम।

आधार मदमगत कुण्डलिनी वरेण्यां ,देवी नमामि सततं पर तत्त्व रूपाम।।

फिर प्राण सजीविंत कुण्डलिनी जागरण माला से मुलाधार कुंडलिनी जागरण मंत्र से ५१ माला जाप करें।

२१ दिन के प्रयोग में मुलाधार चक्र की साधना पूर्ण होती है।

इस साधना के बाद अगले चक्र की साधना की जाती है।

मूलाधार कुंडलिनी जागरण मंत्र साधना के लिये मंत्र सिद्ध यंत्र व माला किट का होना आवश्यक है इस कुंडलिनी किट के साथ आप को मंत्र फ्री दिया जाये गा।

Awake Spiritual energy Kundalini accurate fast

Get mantra Energized Kundalini Yantra Rosary And all mantra method Free.

First and get mantra Method free.

मुलाधार चक्र साधना

कुंडलिनी तंत्र साधना

सब से पहले इन्हें सिद्ध करने के लिए सहायक , 3 सेट यन्त्रों माला द्वारा मंत्र साधना करे। इसके साथ आप के अंदर रोशनी ओर शक्ति द्वारा देखने की ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होने लगे गी , जो कुंडलीनी के अंदर ढूंढने में सहायक होती है। अगर आप कुंडलीनी ओर मुलाधार चक्र को अगर देख नही पा रहे हो तो जागरण केसे करो गे। इसलिए आप को सीढ़ी दर सीढ़ी आगे चढ़ते जाना है। आसान ओर सेफ रास्ता यही है जो शिव द्वारा संचालित एवं निर्देशित किया है।
कुंडलिनी ही हमारे शरीर, भाव और विचार को प्रभावित करती है।
चक्रों के नाम :
मूलत: सात चक्र होते हैं:-

1- मूलाधार,

2- स्वाधीष्ठान,

3- मनीपूर,

4- अनाहता,

5- विशुद्धि,

6- आग्याआज्ञा

7- सहस्रार

8- बिन्दु

मूलाधार चक्र

KUNDALINI AWAKENING

BY MANTRA HAVAN

Kundalini Yantra Rosary Kit Online Sale

Highly Mantra Energized Kundalini Chakra Yantra Rosary (Mala)

Kundalini MalaHTML5 Icon Kundalini YantraHTML5 Icon