डाकिनी मंत्र साधना

Dakini Kundalini Mantra

डाकिनी

तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है |सामान्यजन भी इस नाम से परिचित हैं |डाकिनी नाम आते ही एक उग्र स्वरुप की भावना मष्तिष्क में उत्पन्न होती है |वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है अपने सभी रूपों में |

डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं |डाकिनी का अर्थ है –ऐसी शक्ति जो “डाक ले जाए “|यह ध्यान रखले लायक है की प्राचीनकाल से और आज भी पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है -चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना |

यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है | तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है |यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है |यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है |यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं ,|इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं

डाकिनी Rakini

शेषनाग के शरीर के मध्य में नौ कुंण्डलियां होती है ऊपरी शीर्ष पर चंद्रमा होता है इस चंद्रमा के नीचे एक उर्जा चक्र होता है इस ऊर्जा चक्र में देवी पार्वती का निवास होता है। इन्हें गौरी कहा जाता है यहां के चक्र के मध्य में सदाशिव विद्यमान होते हैं। क्षेत्र के बाहर इसकी शक्ति का जो क्षेत्र हो तो बनता है मैं वास्तविक मानसरोवर सरोवर है इस चंद्रमा के मध्य बिंदु पर शीर्ष से एक शक्ति का पतन होता रहता है यही सत्य है जो शरीर रूपी दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में आत्मदाह करती है।
इसी शक्तिपात से किसी भी इकाई का जीवन है इसके नीचे ललाट के मध्य में त्रिनेत्र धारी रुद्र या ज्ञानेश्वरी का निवास है इसके नीचे ललाट के मध्य त्रिनेत्र धारी रूद्र या ज्ञानेश्वरी का निवास है यह वह चक्र है जिस में निवास करने वाली शक्ति विवेक ज्ञान भौतिक सामर्थ्य से परे की शक्ति प्रदान करती है।
इसके नीचे भृकुटियों के मध्य गणेश हैं इसे योगी आज्ञा चक्र कहते हैं वैदिक ऋषि इसे विश्व देवा कहते हैं इसके नीचे नील सरस्वती या तारा है जो दो स्वरूपों मे कंधे गर्दन एवं गर्दन और खोपड़ी के जोड़ पर रीढ़ में विद्यमान होती है।
इसको वागेश्वरी सरस्वती वीणा वादिनी भी कहा जाता है इसके नीचे केंद्र में जीवात्मा या नाभिक है पूरे शरीर का स्वामी यही है क्योंकि इस केंद्र में ही आत्मा रहती है इसी को भुनेश्वरी कामेश्वरी विष्णु इंद्र अर्धनारीश्वर राजराजित शिव इत्यादि कहा जाता है।
इसके नीचे चक्र में लक्ष्मी है इन्हें कमल ब्रह्मा आदि कहा जाता है इसके दो रूप है, दो चक्र हैं इसके नीचे दुर्गा का चक्र है और इसके नीचे काली का इस चक्र के नीचे जो पुंछ निकलती है वह भैरव जी हैं योग इन चक्रों को किसी और नाम से संबोधित करते हैं वैदिक ऋषि इन्हें भिन्न-भिन्न आकाश के रूप में व्यक्त करते हैं जिनके मध्य देवता निवास करते हैं शक्ति मार्गी इनमें देवियों का निवास बताते हैं शिवपूजक शिवलिंग पंथ में इसे नीचे से डाकिणी, राकिणी, लाकिणी, काकिणी, आदि सप्त योगिनियों के नाम से जानते हैं।
डाकिणी, राकिणी, चैव लाकिणी काकिनी,तथा । शाकिनी हाकिणी, चैव क्रमात् षट् पंकजाधिपा।।
इनमें तीन देवियां और हैं जिनकी कुंण्डलिनी की षट् चक्र वेधन साधना मे प्रयोगात्मक उपयोग नही है ।

डाकिणी का स्वरूप:- रक्त वर्ण की लाल-लाल आंखों लंम्बे बाल नाटे कद की उन्नत स्तनों वाली मुंह में रक्त और मांस भरे भयानक घोर मुद्रा वाली डाकनी नग्न एवं भयानक अट्टाहास करती हुई है।
यह शमशान वासिनी दाहिने दोनों हाथ में खड़ंग और शूल लिए और वाम हाथों में नर कपाल में रक्त और तलवार लिए उग्र स्वरूप की है यह साधक के शत्रु कुल को नष्ट करने वाली है पशुजनों में भय उत्पन्न करने वाली है और रक्त एवं मदिरा से प्रसन्न होने वाली है।
इनकी साधना सर्वांग भैरवी के साथ भी की जा सकती है। महीने द्वार पालिका कहा जाता है , काली के स्थान पर चक्र की अधिष्ठात्री देवी यही है डाकनी का स्थान मूलाधार मैं होता है जो ऋणबिन्दू का अंतिम चक्र है यह रीढ़ कमर की हड्डी के जोड़ के मध्य होता है। डाकिनी यानी डाक ले जाने वाली अर्थात चेतना को नष्ट करके घोर उन्माद काम क्रोध आक्रमकता से युक्त देवी है।
स्मरण करेंगे तो यही भाव महाकाली का है डाकनी की सिद्धि से वही शक्ति प्राप्त होती है जो कामकला काली की सिद्धि से प्राप्त होती है। किंतु यह साधना कुण्डलिनी की शक्ति को तकनीकी द्वारा जगाने की है। ध्यान स्वरूप कि नहीं है ध्यान रूप में भी सिद्धि प्राप्त होती है पर वह इतनी शक्तिशाली नहीं होती है।कुण्डलिनी की सिद्धि परातंत्र विद्या है।
वास्तव में मूलाधार के शिवलिंग की शीर्ष ऊर्जा सर्प फण को ऊपर खींच कर ऊपरी चक्रों के केंद्रों में ले जाने में भीषण मानसिक शक्ति की आवश्यकता होती है। इसी कारण अपने अंदर की भयानक शक्ति को जगाना पड़ता है इस सर्प के फण को उर्ध्व में खींचने में यही समर्थ है। कामकलाकाली महाकाली और कामदेव की भी शक्ति इसे ऊपर खींच सकती है पर इनका उपयोग इस कार्य में स्यात् ही होता है।
योगी प्राणायाम से नारी शक्ति को जगा कर इसे खींचते हैं वैदिक ऋषि इसी चक्र की साधना में ही नहीं करते वह केवल सहस्त्रार चक्र की साधना में ही लिप्त रहते हैं यह चक्र चंद्रमा के नीचे अधोगामी है सहस्त्रधारा के रूप में जंतु मनुष्य में और वृक्षों मे पत्तों के रूप में फैला होता है। |

तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और माना जाता है की यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि आसान हो जाती है और काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि हो जाए तो अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध हो सकते हैं कम प्रयासों में |इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है |डाकिनी नामक देवी की साधना तांत्रिकों की प्रसिद्ध साधना है |

हमारे अन्दर क्रूरता ,क्रोध ,अतिशय हिंसात्मक भाव ,नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति से अर्थात तरंगों से होती है |डाकिनी की सिद्धि पर व्यक्ति में भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती हैतंत्र जगत में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है |यह डाकिनी प्रकृति [पृथ्वी] की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है |इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है |यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है |इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है |यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक की राह बेहद आसान हो जाती है ,यद्यपि साधना में चूक नहीं होनी चाहिए |

इसका स्वरुप एक सुन्दर ,गौरवर्णीय ,तीखे नाक नक्श [नाक कुछ लम्बी ]वाली युवती की होती है जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है |काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना ,विचरण और प्रभाव का विवरण मिलता है |इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है ,इसको नष्ट नहीं किया जा सकता ,यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी |इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है यद्यपि स्वयमेव भी प्रतिक्रिया कर सकती है |सामान्यतया यहनदी-सरोवर के किनारों , घाटों ,शमशानों, तंत्र पीठों ,एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर सकती हैं ,जो उजाले की बजाय अँधेरे में होना पसंद करती हैं |

इस डाकिनी और मूलाधार की डाकिनी में अंतर होता है |मूलाधार की डाकिनी व्यक्ति के मूलाधार से जुडी होती है ,कुंडलिनी सुप्त तो वह भी सुप्त |तंत्र मार्ग से कुंडलिनी जगाने की कोशिश पर सबसे पहले इसका ही जागरण होता है |इसकी साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और कुंडलिनी साधना के अलावा भी यह साधित होती है |कुंडलिनी की डाकिनी शक्ति की साधना पर प्रकृति की डाकिनी का आकर्षण हो सकता है और वह उपस्थित हो सकती है, यद्यपि प्रकृति में पाई जाने वाली डाकिनी प्रकृति की स्थायी शक्ति है जिसकी साधना प्रकृति भिन्न होती है किन्तु गुण-भाव समान ही होते हैं |इसमें अनेक मतान्तर हैं की डाकिनी की स्वतंत्र साधना पर काली से सम्बंधित डाकिनी का आगमन होता है अथवा प्रकृति की डाकिनी का ,क्योकि प्रकृति भी तो काली के ही अंतर्गत आता है |

वस्तुस्थिति कुछ भी हो किन्तु डाकिनी एक प्रबल शक्ति होती है और यह इतनी सक्षम है की सिद्ध होने पर व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकताएं पूर्ण कर सकती है तथा साधना में सहायक हो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है |

डाकिनी कुंडलिनी मंत्र साधना

डाकिनी की सहायता से सभी सिद्धीयां जल्दी प्राप्त होने लगती हैं कुंडलिनी जागरण का रास्ता भी खुलने लगता है इसके लिये सर्वप्रथम आप को डाकिनी देवी मंत्र सिद्ध माला व सामग्री लेनी होगी उस के साथ साथ ही आप को सारे मंत्र साधना विधा फ्री में मिल जाये गी.
डाकिनी की साधना आप अपने एकांत  कमरे मे भी कर सकते हैं याद रक्खें डाकिनी एक प्रचंड शक्ति है इसलिये यह साधना रात्रि काल ही ऊचित होता है जिसमें कोई व्यवधान न हो यह 21 दिन की साधना है.
दिन वीरवार या नवरात्रि या शुभ दिन से शुरू करें
दिशा – ऊतर या पूर्व मुख आसन पर बैंठे .
डाकिनी एमुलेट
यंत्र मालाको किसी साफ प्लेट में स्थापित करें, धूप दीप लगा मीठा अर्पण करें.

गणेश व शिव जी गुरू जी की 5 /5 माला जाप करें
1- ऊं गं गणप्तये नमः
2- ऊँ नमः शिवाय
3- ऊँ ह्रीं गुरूवे नमः
उसके बाद मूल मंत्र का जाप करें

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